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Monday, August 18, 2014

गोगाजी , गुग्गा, जाहिर वीर जाहर पीर



गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं जिन्हे जहरवीर गोगा जी के नाम से भी जाना जाता है । राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक शहर गोगामेड़ी है। यहां भादव शुक्लपक्ष की नवमी को गोगाजी देवता का मेला भरता है। इन्हे हिन्दु और मुस्लिम दोनो पूजते है|
वीर गोगाजी गुरुगोरखनाथ के परमशिस्य थे। चौहान वीर गोगाजी का जन्म विक्रम संवत 1003 में चुरू जिले के ददरेवा गाँव में हुआ था सिद्ध वीर गोगादेव के जन्मस्थान, जो राजस्थान के चुरू जिले के दत्तखेड़ा ददरेवा में स्थित है। जहाँ पर सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मत्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं।कायम खानी मुस्लिम समाज उनको जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं तथा उक्त स्थान पर मत्‍था टेकने और मन्नत माँगने आते हैं। इस तरह यह स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक है।मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्घा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए। गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान वंश के राजपूत शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से गुरु गोरखनाथ के वरदान से भादो सुदी नवमी को हुआ था। चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी का राज्य सतलुज सें हांसी (हरियाणा) तक था।
लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगाजी को साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग उन्हें गोगाजी चौहान, गुग्गा, जाहिर वीर व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है।
जयपुर से लगभग 250 किमी दूर स्थित सादलपुर के पास दत्तखेड़ा (ददरेवा) में गोगादेवजी का जन्म स्थान है। दत्तखेड़ा चुरू के अंतर्गत आता है। गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं है गोगादेव की घोड़े पर सवार मूर्ति। भक्तजन इस स्थान पर कीर्तन करते हुए आते हैं और जन्म स्थान पर बने मंदिर पर मत्‍था टेककर मन्नत माँगते हैं।आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है. गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ती उत्कीर्ण की जाती है. लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है. भादवा माह के शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की नवमियों को गोगाजी की स्मृति में मेला लगता है. उत्तर प्रदेश में इन्हें जहर पीर तथा मुसलमान इन्हें गोगा पीर कहते हैं
हनुमानगढ़ जिले के नोहर उपखंड में स्थित गोगाजी के पावन धाम गोगामेड़ी स्थित गोगाजी का समाधि स्थल जन्म स्थान से लगभग 80 किमी की दूरी पर स्थित है, जो साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा प्रतीक है, जहाँ एक हिन्दू व एक मुस्लिम पुजारी खड़े रहते हैं। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से लेकर भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा तक गोगा मेड़ी के मेले में वीर गोगाजी की समाधि तथा गोगा पीर व जाहिर वीर के जयकारों के साथ गोगाजी तथा गुरु गोरक्षनाथ के प्रति भक्ति की अविरल धारा बहती है। भक्तजन गुरु गोरक्षनाथ के टीले पर जाकर शीश नवाते हैं, फिर गोगाजी की समाधि पर आकर ढोक देते हैं। प्रतिवर्ष लाखों लोग गोगा जी के मंदिर में मत्था टेक तथा छड़ियों की विशेष पूजा करते हैं।
प्रदेश की लोक संस्कृति में गोगाजी के प्रति अपार आदर भाव देखते हुए कहा गया है कि गाँव-गाँव में खेजड़ी, गाँव-गाँव में गोगा वीर गोगाजी का आदर्श व्यक्तित्व भक्तजनों के लिए सदैव आकर्षण का केन्द्र रहा है।
गोरखटीला स्थित गुरु गोरक्षनाथ के धूने पर शीश नवाकर भक्तजन मनौतियाँ माँगते हैं।विद्वानों व इतिहासकारों ने उनके जीवन को शौर्य, धर्म, पराक्रम व उच्च जीवन आदर्शों का प्रतीक माना है।लोक देवता जाहरवीर गोगाजी की जन्मस्थली ददरेवा में भादवा मास के दौरान लगने वाले मेले के दृष्टिगत पंचमी (सोमवार) को श्रद्धालुओं की संख्या में और बढ़ोतरी हुई। मेले में राजस्थान के अलावा पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश व गुजरात सहित विभिन्न प्रांतों से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं।
जातरु ददरेवा आकर न केवल धोक आदि लगाते हैं बल्कि वहां अखाड़े (ग्रुप) में बैठकर गुरु गोरक्षनाथ व उनके शिष्य जाहरवीर गोगाजी की जीवनी के किस्से अपनी-अपनी भाषा में गाकर सुनाते हैं। प्रसंगानुसार जीवनी सुनाते समय वाद्ययंत्रों में डैरूं व कांसी का कचौला विशेष रूप से बजाया जाता है। इस दौरान अखाड़े के जातरुओं में से एक जातरू अपने सिर व शरीर पर पूरे जोर से लोहे की सांकले मारता है। मान्यता है कि गोगाजी की संकलाई आने पर ऐसा किया जाता है। गोरखनाथ जी से सम्बंधित एक कथा राजस्थान में बहुत प्रचलित है। राजस्थान के महापुरूष गोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की माँ बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरू गोरखनाथ ‘गोगामेडी’ के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा| report-- Yogesh Pareek ‪#‎wikipidea‬

Sunday, August 17, 2014

मेरी कविताए


मेरी कविताए

1.मुझे भी मरना है देश के लिए 
 मुझे भी कुछ करना है देश के लिए 
 मुझे भी कुछ कहना है देश के लिए 
 भारत मेरी शान हैं । 

 मुझे इस पर अभिमान हैं ।
 इसका मुझ पर अधिकार है!
 क्योंकि मेरा भारत महान हैं।
 भारत माता की जय #YogeshPareek18. 
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2.                                                                  (कर्म)  

दिया जीवन विधाता ने तु इसको बूझ ना पाया है। य!द रख कर्तव्य सारे अपने तु। तुम्हें अहसान चुकाना है। मान बेठा तु ये केसे यही तेरा ठिकाना है l कई आये कई गये यहाँ कोई टीक ना पाया है। कागज के टुकड़ों मे जीवन हमे न गमाना हे । हमे भेजा बना के दूत हमे सद्भाव बढ़ाना है। कर परोपकार अंत मे यही काम आना है। #YogeshPareek18
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3.दिया जिसने तुझे जीवन उसे तु तुच्छ समझ बेठा ।

 दो दिन के आशिया को अपना समझ बेठा ।
 भाई को कसाई ओेर बाप को पाप समझ बेठा।
 अरे मुर्ख अब समझ ले तु तेरा है काल आ बेठा। 
#YogeshPareek18 
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------4.आज की मेरी रचना
जब उस के सितारे चमन थे तो वो उसके साथ व्यस्त थी 

 ओर मैं उस के लिए । उसका नया सवेरा है मेरा नया अनुभव है । 
मुझे उसका इंतजार है उसे अपने प्यार का।
 हम कैसे ये दुआएं दे कि आपको आपका प्यार मिले क्योंकि हमे आपसे प्यार है
 इंतजार है आपके प्यार की बेवफाई का क्योंकि जिस दिन आपका बेवफा प्यार नहीं उस दिन आपके साथ हम है। 
#Yogeshpareek18 
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------5. आज की रचना 
तस्वीरों की दुकानों मे ईश्वर अल्लाह बैठें जैसे मानो भाई भाई।
    क्यो झगड़ रहे हो दुनिया वालो बनकर हिन्दू मुस्लिम सीख ईसाई ।
    लड़ते हो मानो जेसे हो तुम कोई पापी दुष्ट कसाई ।
    धर्म है अपना मानवता पढ़ लो मानवता की पढ़ाई। 
    बुराई है हम सब मै धर्मों मे नहीं है बुराई ।
    सिख लो सब धर्मो वालो नहीं करनी अब हमे ओर लड़ाई।
    क्योंकि परमात्मा ने हमे बना के भेजा है भाई भाई।
      #Yogeshpareek18 
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6. मासूमियत देख तेरी चाँद शरमा जाए । 
करे तारीफ क्या तेरी कहीं हम हार ना जाए।
# YOGESHPAREEK18
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सभी को योगेश का प्रणाम और कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामना आशा है आप सभी ठीक है, आज हमारे प्रिय और प्यारे कृष्ण का जन्म दिवस है आज के ही दिन गोपाल कृष्ण का जन्म हुआ था


मान्यता है कि द्वापर युग के अंतिम चरण में भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. इसी कारण शास्त्रों में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी के दिन अर्द्धरात्रि में श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी मनाने का उल्लेख मिलता है. पुराणों में इस दिन व्रत रखने को बेहद अहम बताया गया है. इस साल जन्माष्टमी (Janmashtami) 17 अगस्त को है.

Birth Of Krishnaकृष्ण जन्मकथा
श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी व श्रीवसुदेव के पुत्र रूप में हुआ था. कंस ने अपनी मृत्यु के भय से अपनी बहन देवकी और वसुदेवको कारागार में कैद किया हुआ था. कृष्ण जी जन्म के समय घनघोर वर्षा हो रही थी. चारो तरफ़ घना अंधकार छाया हुआ था. भगवान के निर्देशानुसार कुष्ण जी को रात में ही मथुरा के कारागार से गोकुल में नंद बाबा के घर ले जाया गया.

नन्द जी की पत्नी यशोदा को एक कन्या हुई थी. वासुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को अपने साथ ले गए. कंस ने उस कन्या को वासुदेव और देवकी की संतान समझ पटककर मार डालना चाहा लेकिन वह इस कार्य में असफल ही रहा. दैवयोग से वह कन्या जीवित बच गई. इसके बाद श्रीकृष्ण का लालन–पालन यशोदा व नन्द ने किया. जब श्रीकृष्ण जी बड़े हुए तो उन्होंने कंस का वध कर अपने माता-पिता को उसकी कैद से मुक्त कराया.

कामाख्या शक्तिपीठ पूजन परिक्रमा और इतिहास

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