कामख्या मंदिर में किसी भी प्रकार के पूजन अनुष्ठान हेतु संपर्क करे हम रहने खाने की व्यवस्था करते है पंडित योगेश पारीक ९४३५५७१७९४

Wednesday, November 4, 2015

2015 /2016 दिपावली लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने का सरल उपाय

बिल्ली के प्रसव के समय बिल्ली के द्वारा एक प्रकार की थैली त्यागी जाती है। जिसे आंवल या जेर कहते हैं। प्रायः सभी पशुओं में प्रसव के समय आंवल निकलता है। परंतु बिल्ली की  विशेषता यह है कि बिल्ली अपना आंवल तुरंत खा जाती है। पालतू बिल्ली का आंवल किसी कपड़े से ढक कर प्राप्त कर लिया जाये तो इसका तांत्रिक प्रभाव धन-धान्य में वृद्धि करता है।

बिल्ली की जेर तांत्रिक सिद्धि या प्रभावी जादुई शक्ति प्राप्त करने में काफी महत्व है। तांत्रिक उद्देश्य के लिए कई तांत्रिक उपयोग यह। खरीद की है, तो बिल्ली की जेर comeby करने के लिए बहुत मुश्किल है, लेकिन बेहद उपयोगी और लाभदायक है। बिल्ली की जेर पारंपरिक रूप से तांत्रिकों द्वारा अत्यधिक लाभकारी और इस्तेमाल मान लिया जाता है, ग्रामीणों, व्यापारियों, राजनेताओं, निवेशकों, शेयर दलालों, जुआरी, व्यापार आदमी, उच्च रैंक के लोगों और नेताओं।

एक बिल्ली बिल्ली के बच्चे को जन्म देता है, जब वह तुरंत उसकी नौसेना की हड्डी खाती है और इसे पाने के लिए कठिन है, क्योंकि यह बहुत दुर्लभ है। बिल्ली की जेर भी बिल्ली की नाल कहा जाता है। यह चमत्कारी शक्ति है और जादुई परिणाम प्रदान करता है।

महत्व और लाभ:

बिल्ली की जार अपने स्वामी को जबरदस्त लाभ प्रदान करता है। यह सोच क्षमताओं और मन की उपस्थिति को बेहतर बनाता है इंसान में आत्मविश्वास का स्तर बढ़ता है। यह भी ग्रह राहु, मंगल और शुक्र के हानिकारक प्रभाव को दूर करने में बहुत फायदेमंद है।

यह भारी मुनाफा और व्यापार में सफलता मिलती है और संचय, धन और पैसे के आरोप में मदद करता है। यह व्यापारियों और हाई प्रोफाइल लोगों को इसे खुद क्यों है कि सभी दौर समृद्धि और परिवार में वित्तीय शक्ति प्रदान करता है।

इसका उपयोग कैसे करना है?

यह नकदी बॉक्स, कार्यालयों, दुकान, घर और कारखाने में सिंदूर के साथ लाल कपड़े में लपेटा रखा जाना चाहिए। इसके उपयोग और एहतियात स्पष्ट रूप से लाल किताब में वर्णित है।

पहले यह सक्रिय है और फिर इसे आप अपने लाभ पूरे दे सकते मंत्र और वैदिक विधि या पूजा से सक्रिय हो गया है। बिल्ली की जेर वशीकरण, दुर्गा पूजा, विष्णु पूजा, मोहिनी पूजा और कई अन्य पूजा और अनुष्ठान में प्रयोग किया जाता है।

वे बिल्ली की यिर्म का असली लाभ है, जो जीवन में धन, धन, संपत्ति और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं तो यह है कि हम पूरी तरह से हमारे वफादार ग्राहकों के लिए बिल्ली की जेर सक्रिय प्रदान करते हैं।

बिल्ली की जेर नाल मगवाने के लिए सम्पर्क करे +919435571794

Sunday, October 25, 2015

शरद पूर्णिमा

आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला त्यौहार शरद पूर्णिमा (Sharad Poornima) की कथा कुछ इस प्रकार से है- एक साहूकार के दो पुत्रियां थी। दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थी, परन्तु बड़ी पुत्री विधिपूर्वक पूरा व्रत करती थी जबकि छोटी पुत्री अधूरा व्रत ही किया करती थी। परिणामस्वरूप साहूकार के छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से अपने संतानों के मरने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि पहले समय में तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत किया करती थी, जिस कारणवश तुम्हारी सभी संतानें पैदा होते ही मर जाती है। फिर छोटी पुत्री ने पंडितों से इसका उपाय पूछा तो उन्होंने बताया कि यदि तुम विधिपूर्वक पूर्णिमा का व्रत करोगी, तब तुम्हारे संतान जीवित रह सकते हैं।

साहूकार की छोटी कन्या ने उन भद्रजनों की सलाह पर पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक संपन्न किया। फलस्वरूप उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई परन्तु वह शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। तब छोटी पुत्री ने उस लड़के को पीढ़ा पर लिटाकर ऊपर से पकड़ा ढंक दिया। फिर अपनी बड़ी बहन को बुलाकर ले आई और उसे बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया।
बड़ी बहन जब पीढ़े पर बैठने लगी तो उसका घाघरा उस मृत बच्चे को छू गया, बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा। बड़ी बहन बोली- तुम तो मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से तो तुम्हारा यह बच्चा यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली- बहन तुम नहीं जानती, यह तो पहले से ही मरा हुआ था, तुम्हारे भाग्य से ही फिर से जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। इस घटना के उपरान्त ही नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।

Thursday, July 16, 2015

कामख्या माता की साधना

नमस्कार में योगेश पारीक आपका स्वागत करता हु। आज में आपको बताऊंगा की भगवती कामख्या की साधना कैसे करे और कब करे ।

भगवती कामख्या माता का मंदिर गुवाहाटी असम में है ये मंदिर कामख्या रेलवे स्टेशन से 8 किलोमीटर दूर है । यहा रहने की व्यवस्था है और शुद्ध शाकाहारी भोजन की भी व्यवस्था

                  ।।साधना करने से पुर्व जानने योग्य बाते ।।

कामख्या भगवती सती के अंग से योनि रूप में प्रगट हुई है। और यह देवी का स्वरूप है । इस लिए इनकी साधना नवरात्री में विशेष फलदायक है तथा यहा गुवाहाटी असम कामख्या में जून महीने में 22 23 24 25 माता को रजस्वला दोष आता है देवीपुराण के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्ष में एक बार, त्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलिकाल में प्रत्येक वर्ष जून माह में मनाया जाता है। इसे अम्बूवाची योग पर्व कहते है । जिस कारण इस समय में यहा साधना करना तो बहुत बहुत फलदायक है। तथा जिस प्रकार हम किसी विशेष व्यक्ति से मिलने जाते है तो उसके बारे में जनके जाते है उन्हें क्या पसंद है क्या नही क्या पहनना अच्छा लगता है क्या नही क्या खाना पसंद है क्या नही इस प्रकार कामख्या माता की पसंद का भी पता होना बहुत जरुरी है।
                 
                     ।। साधना के लिए अच्छा मुहूर्त ।।

माता कामख्या की ही नही कोई भी साधना करने के लिए आपको अच्छा समय देखना अत्यंत जरुरी है क्यों की जिस प्रकार पतझड़ में फल फुल नही लगते उसी प्रकार बिना अच्छे मुहूर्त के बिना साधना में सफलता नही मिलती ।
साधना का मुहूर्त
नवरात्री - चैत्र ,आषाढ़ (गुप्तनवारात्री) ,आषोज, पोष (गुप्तनवरात्री)
अम्बुवाची - जून 22 23 24 25
ग्रहण - चन्द्र और सूर्या
सावन - देवधुनि मेला

Monday, July 13, 2015

कौनसी तिथि को कौनसा कार्य करे और कौनसा वर्जित है।

हिन्दु धर्म मेंतिथियों के आधार पर मुहूर्त्त निकाले जाते हैंऔर उनके ही अनुसार विभिन्न धार्मिक कार्य किए जातेहैं. इसी कारण ज्योतिष में तिथियों का एक महत्वपूर्ण स्थान है. सभी कार्यों का मुहूर्त तिथियों के अनुसार बाँटा गया है. आइए जानते हैं उनके बारे में...
प्रतिपदा तिथि प्रतिपदा तिथि में गृह निर्माण, गृह प्रवेश, वास्तुकर्म, विवाह, यात्रा, प्रतिष्ठा, शान्तिक तथा पौष्टिक कार्य आदि सभी मंगल कार्य किए जाते हैं.
1.कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में चन्द्रमा को बली माना गया है और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में चन्द्रमा को निर्बल माना गया है. इसलिए शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में विवाह, यात्रा, व्रत, प्रतिष्ठा, सीमन्त, चूडा़कर्म, वास्तुकर्म तथा गृहप्रवेश आदि कार्य नहीं करने चाहिए.
2.द्वित्तीया तिथिविवाह मुहूर्त, यात्रा करना, आभूषण खरीदना, शिलान्यास, देश अथवा राज्य संबंधी कार्य, वास्तुकर्म, उपनयन आदि कार्य करना शुभ माना होता है परंतु इस तिथि में तेल लगाना वर्जित है.
3.तृतीया तिथितृतीया तिथि में शिल्पकला अथवा शिल्प संबंधी अन्य कार्यों में, सीमन्तोनयन, चूडा़कर्म, अन्नप्राशन, गृह प्रवेश, विवाह, राज-संबंधी कार्य, उपनयन आदि शुभ कार्य सम्पन्न किए जा सकते हैं.
4.चतुर्थी तिथिसभी प्रकार के बिजली के कार्य, शत्रुओं का हटाने का कार्य, अग्निसंबंधी कार्य, शस्त्रों का प्रयोग करना आदि के लिए यह तिथि अच्छी मानी गई है. क्रूर प्रवृति के कार्यों के लिए यह तिथि अच्छी मानी गई है..
5.पंचमी तिथिपंचमी तिथि सभी प्रवृतियों के लिए यह तिथि उपयुक्त मानी गई है. इस तिथि में किसी को ऋण देना वर्जित माना गया है.
6.षष्ठी तिथिषष्ठी तिथि में युद्ध में उपयोग में लाए जाने वाले शिल्प कार्यों का आरम्भ, वास्तुकर्म, गृहारम्भ, नवीन वस्त्र पहनने जैसे शुभ कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं. इस तिथि में तैलाभ्यंग, अभ्यंग, पितृकर्म, दातुन, आवागमन, काष्ठकर्म आदि कार्य वर्जित हैं.
7.सप्तमी तिथिविवाह मुहुर्त, संगीत संबंधी कार्य, आभूषणों का निर्माण औरनवीन आभूषणों को धारण किया जा सकता है. यात्रा, वधु-प्रवेश, गृह-प्रवेश, राज्य संबंधी कार्य, वास्तुकर्म, चूडा़कर्म, अन्नप्राशन, उपनयन संस्कार, आदि सभी शुभ कार्य किए जा सकते हैं
8.अष्टमी तिथिइस तिथि में लेखन कार्य, युद्ध में उपयोग आने वाले कार्य, वास्तुकार्य, शिल्प संबंधी कार्य, रत्नों से संबंधित कार्य, आमोद-प्रमोद से जुडे़ कार्य, अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाले कार्यों का आरम्भ इस तिथि में किया जा सकता है.
9.नवमी तिथिनवमी तिथि में शिकार करने का आरम्भ करना, झगड़ा करना, जुआ खेलना, शस्त्र निर्माण करना, मद्यपान तथा निर्माण कार्य तथा सभी प्रकार के क्रूर कर्म इस तिथि में किए जाते हैं.
10.दशमी तिथिदशमी तिथि में राजकार्य अर्थात वर्तमान समय में सरकार से संबंधी कार्यों का आरम्भ किया जा सकता है. हाथी, घोड़ों से संबंधित कार्य, विवाह, संगीत, वस्त्र, आभूषण, यात्रा आदि इस तिथि में की जा सकती है. गृह-प्रवेश, वधु-प्रवेश, शिल्प, अन्न प्राशन, चूडा़कर्म, उपनयन संस्कार आदि कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं.
11.एकादशी तिथिएकादशी तिथि में व्रत, सभी प्रकारके धार्मिक कार्य, देवताओं का उत्सव, सभी प्रकार के उद्यापन, वास्तुकर्म, युद्ध से जुडे़ कर्म,शिल्प, यज्ञोपवीत, गृह आरम्भ करनाऔर यात्रा संबंधी कार्य किए जा सकते हैं.
12.द्वादशी तिथिइस तिथि में विवाह, तथा अन्य शुभ कर्म किए जा सकते हैं. इस तिथि में तैलमर्दन, नए घर का निर्माण करना तथा नए घर में प्रवेश तथा यात्रा का त्याग करना चाहिए.
13.शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथिसंग्राम से जुडे़ कार्य, सेना के उपयोगी अस्त्र-शस्त्र, ध्वज, पताका के निर्माण संबंधी कार्य, राज-संबंधी कार्य, वास्तु कार्य, संगीत विद्या से जुडे़ काम इस दिन किए जा सकते हैं. इस दिन यात्रा, गृह प्रवेश, नवीन वस्त्राभूषण तथा यज्ञोपवीत जैसे शुभ कार्यों का त्याग करना चाहिए.
14.चतुर्दशीचतुर्दशी तिथि में सभी प्रकार के क्रूर तथा उग्र कर्म किए जा सकते हैं. शस्त्र निर्माण इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है. इस तिथि में यात्रा करना वर्जित है. चतुर्थी तिथि में किए जाने वाले कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं.
15.अमावस्या इस तिथि में पितृकर्म मुख्य रुप से किए जाते हैं. महादान तथा उग्र कर्म किए जा सकते हैं. इस तिथि में शुभ कर्म तथा स्त्री का संग नहीं करना चाहिए.
16.पूर्णमासीपूर्णमासी जिसे पूर्णिमा भी कहते हैं, इस तिथि में शिल्प, आभूषणों से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं. संग्राम, विवाह, यज्ञ, जलाशय, यात्रा, शांति तथा पोषण करने वाले सभी मंगल कार्य किए जा सकते हैं.
श्री न्यूज़

कामख्या मंदिर (कामरूप)

कामाख्या मंदिरअसम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से ८ किलोमीटर दूर कामाख्या मे है।
कामाख्या से भी १० किलोमीटर दूर नीलाचल पव॑त पर स्थित हॅ। यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है । यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका बहुत तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।
अम्बुवाची पर्वविश्व के सभी तांत्रिकों, मांत्रिकों एवं सिद्ध-पुरुषों के लिये वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बूवाची योग पर्व वस्तुत एक वरदान है। यह अम्बूवाची पर्वत भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्ष में एक बार, त्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलिकाल में प्रत्येक वर्ष जून माह में तिथि के अनुसार मनाया जाता है। इस बार अम्बूवाची योग पर्व जून की 22, 23, 24 तिथियों में मनाया गया।शीर्षकपौराणिक सन्दर्भपौराणिक सत्य है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान माँ भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की गर्भ गृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है। यह अपने आप में, इस कलिकाल में एक अद्भुत आश्चर्य का विलक्षण नजारा है। कामाख्या तंत्र के अनुसार -योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा। रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा।।इस बारे में `राजराजेश्वरी कामाख्या रहस्य' एवं `दस महाविद्याओं' नामक ग्रंथ के रचयिता एवं मां कामाख्या के अनन्य भक्त ज्योतिषी एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ॰ दिवाकर शर्मा ने बताया कि अम्बूवाची योग पर्व के दौरान मां भगवती के गर्भगृह के कपाट स्वत ही बंद हो जाते हैं और उनका दर्शन भी निषेध हो जाता है। इस पर्व की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व से इस पर्व में तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना हेतु सभी प्रकार की सिद्धियाँ एवं मंत्रों के पुरश्चरण हेतु उच्च कोटियों के तांत्रिकों-मांत्रिकों, अघोरियों का बड़ा जमघट लगा रहता है। तीन दिनों केउपरांत मां भगवती की रजस्वला समाप्ति पर उनकी विशेष पूजा एवं साधना की जाती है।
कामाख्या के शोधार्थी एवं प्राच्य विद्या विशेषज्ञ डॉ॰ दिवाकर शर्मा कहते हैं कि कामाख्या के बारे में किंवदंती है कि घमंड में चूर असुरराज नरकासुर एक दिन मां भगवती कामाख्या को अपनी पत्नी के रूप में पाने का दुराग्रह कर बैठा था। कामाख्या महामाया ने नरकासुर की मृत्यु को निकट मानकर उससे कहा कि यदि तुम इसी रात में नील पर्वत पर चारों तरफ पत्थरों के चार सोपान पथों का निर्माण कर दो एवंकामाख्या मंदिर के साथ एक विश्राम-गृह बनवा दो, तो मैं तुम्हारी इच्छानुसार पत्नी बन जाऊँगी और यदि तुम ऐसा न कर पाये तो तुम्हारी मौत निश्चित है। गर्व में चूर असुर ने पथों के चारों सोपान प्रभात होने से पूर्व पूर्ण कर दिये और विश्राम कक्ष का निर्माण कर ही रहा था कि महामाया के एक मायावी कुक्कुट (मुर्गे) द्वारा रात्रि समाप्ति की सूचना दी गयी, जिससे नरकासुर ने क्रोधित होकर मुर्गे का पीछा किया और ब्रह्मपुत्र के दूसरे छोर पर जाकर उसका वध कर डाला। यह स्थान आज भी `कुक्टाचकि' के नाम से विख्यात है। बाद में मां भगवती की माया से भगवान विष्णु ने नरकासुर असुर का वध कर दिया। नरकासुर कीमृत्यु के बाद उसका पुत्र भगदत्त कामरूप का राजा बना। भगदत्त का वंश लुप्त हो जाने से कामरूप राज्य छोटे-छोटे भागों में बंट गया और सामंत राजा कामरूप पर अपना शासन करने लगा।नरकासुर के नीच कार्यों के बाद एवं विशिष्ट मुनि के अभिशाप से देवी अप्रकट हो गयी थीं और कामदेव द्वारा प्रतिष्ठित कामाख्या मंदिर ध्वंसप्राय हो गया था।पं. दिवाकर शर्मा ने बतलाया कि आद्य-शक्ति महाभैरवी कामाख्या के दर्शन से पूर्व महाभैरव उमानंद, जो कि गुवाहाटी शहर के निकट ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य भाग में टापू के ऊपर स्थित है, का दर्शन करना आवश्यक है। यह एक प्राकृतिक शैलदीप है, जो तंत्र का सर्वोच्च सिद्ध सती का शक्तिपीठ है। इस टापू को मध्यांचल पर्वत के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहीं पर समाधिस्थ सदाशिव को कामदेव ने कामबाण मारकर आहत किया था और समाधि से जाग्रत होने पर सदाशिव ने उसे भस्म कर दिया था। भगवती के महातीर्थ (योनिमुद्रा) नीलांचल पर्वत पर ही कामदेव को पुनजीवनदान मिला था। इसीलिए यह क्षेत्र कामरूप के नाम से भी जाना जाता है।सर्वोच्च कौमारी तीर्थसती स्वरूपिणी आद्यशक्ति महाभैरवी कामाख्या तीर्थ विश्व का सर्वोच्च कौमारी तीर्थ भी माना जाता है। इसीलिए इस शक्तिपीठ में कौमारी-पूजा अनुष्ठान का भी अत्यन्त महत्व है। यद्यपि आद्य-शक्ति की प्रतीक सभी कुल व वर्ण की कौमारियाँ होती हैं। किसी जाति का भेद नहीं होता है। इस क्षेत्र में आद्य-शक्ति कामाख्या कौमारी रूप में सदा विराजमान हैं।इस क्षेत्र में सभी वर्ण वजातियों की कौमारियां वंदनीय हैं, पूजनीय हैं। वर्ण-जाति का भेद करने पर साधक की सिद्धियां नष्ट हो जाती हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि ऐसा करनेपर इंद्र तुल्य शक्तिशाली देव को भी अपने पद से वंछित होना पड़ा था।जिस प्रकार उत्तर भारत में कुंभ महापर्व का महत्व माना जाता है, ठीक उसी प्रकार उससे भी श्रेष्ठ इस आद्यशक्ति के अम्बूवाची पर्व का महत्व है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की दिव्य आलौकिक शक्तियों का अर्जन तंत्र-मंत्र में पारंगत साधक अपनी-अपनी मंत्र-शक्तियों को पुरश्चरण अनुष्ठान कर स्थिर रखते हैं। इस पर्व में मां भगवती के रजस्वला होने से पूर्व गर्भगृह स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, जो कि रक्तवर्ण हो जाते हैं। मंदिर के पुजारियों द्वारा ये वस्त्र प्रसाद के रूप में श्रद्धालु भक्तों में विशेष रूप से वितरित किये जाते हैं। इस पर्व पर भारत ही नहीं बल्कि बंगलादेश, तिब्बत और अफ्रीका जैसे देशों के तंत्र साधक यहां आकर अपनी साधना के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करते हैं। वाममार्ग साधना का तो यह सर्वोच्च पीठ स्थल है। मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी इत्यादि तंत्र साधक भी शाबर तंत्र में अपना यहीं स्थान बनाकर अमर हो गये हैं।

Report by डॉ॰ दिवाकर शर्मा

Saturday, July 11, 2015

Jyotish Sikhe ज्योतिष सीखे अध्याय - 1 (learn astrology lesson -1 )

ज्योतिष सीखने की इच्छा अधिकतर लोगों में होती है। लेकिनउनके सामने समस्या यह होती है कि ज्योतिष की शुरूआत कहाँ से की जाये?कुछ जिज्ञासु मेहनत करके किसी ज्यातिषी को पढ़ाने के लियेराज़ी तो कर लेते हैं, लेकिन गुरूजी कुछ इस तरह ज्योतिष पढ़ाते हैं कि जिज्ञासु ज्योतिष सीखने की बजाय भाग खड़े होते हैं। बहुत से पढ़ाने वाले ज्योतिष की शुरुआत कुण्डली-निर्माण से करते हैं। ज़्यादातर जिज्ञासु कुण्डली-निर्माण की गणित से ही घबरा जाते हैं। वहीं बचे-खुचे “भयात/भभोत” जैसे मुश्किल शब्द सुनकर भाग खड़े होते हैं।अगर कुछ छोटी-छोटी बातों पर ग़ौर किया जाए, तो आसानी से ज्योतिष की गहराइयों में उतरा जा सकता है। ज्योतिष सीखनेके इच्छुक नये विद्यार्थियों को कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए-
1.शुरूआत में थोड़ा-थोड़ा पढ़ें
2.जब तक पहला पाठ समझ में न आये, दूसरे पाठ या पुस्तक पर न जायें।
3.जो कुछ भी पढ़ें, उसे आत्मसात कर लें।
4.बिना गुरू-आज्ञा या मार्गदर्शक की सलाह के अन्य ज्योतिष पुस्तकें न पढ़ें।
5.शुरूआती दौर में कुण्डली-निर्माण की ओर ध्यान न लगायें, बल्कि कुण्डली के विश्लेषण पर ध्यान दें।
6.शुरूआती दौर में अपने मित्रों और रिश्तेदारों से कुण्डलियाँ मांगे, उनका विश्लेषण करें।
7.जहाँ तक हो सके हिन्दी के साथ-साथ ज्योतिष की अंग्रेज़ी की शब्दावली को भी समझें।अगर ज्योतिष सीखने के इच्छुक लोग उपर्युक्त बिन्दुओं को ध्यान में रखेंगे, तो वे जल्दी ही इस विषय पर अच्छी पकड़ बना सकते हैं।
ज्योतिष के मुख्य दो विभाग हैं - गणित और फलित। गणित के अन्दर मुख्य रूप से जन्म कुण्डली बनाना आता है। इसमें समय और स्थान के हिसाब से ग्रहों की स्थिति की गणना की जाती है। दूसरी ओर, फलित विभाग में उन गणनाओं के आधार पर भविष्यफल बताया जाता है। इस शृंखला में हम ज्योतिष के गणित वाले हिस्से की चर्चा बाद में करेंगे और पहले फलित ज्योतिष पर ध्यान लगाएंगे। किसी बच्चे के जन्म के समय अन्तरिक्ष में ग्रहों की स्थिति का एक नक्शा बनाकर रख लिया जाता है इस नक्शे केा जन्म कुण्डली कहते हैं। आजकल बाज़ार में बहुत-से कम्प्यूटर सॉफ़्टवेयर उपलब्ध हैं और उन्हे जन्म कुण्डली निर्माण और अन्य गणनाओं के लिए प्रयोग किया जा सकता है।पूरी ज्योतिष नौ ग्रहों, बारह राशियों, सत्ताईस नक्षत्रों और बारह भावों पर टिकी हुई है। सारे भविष्यफल का मूल आधार इनका आपस में संयोग है। नौ ग्रह इस प्रकार हैं-
ग्रह अन्य नाम अंग्रेजी नाम
सूर्य रवि सन.
चंद्र सोम मून .
मंगल कुज मार्स.
बुध मरकरी .
गुरू बृहस्पति ज्यूपिटर .
शुक्र भार्गव वीनस.
शनि मंद सैटर्न .
राहु नॉर्थ नोड.
केतु साउथ नोड .
आधुनिक खगोल विज्ञान (एस्ट्रोनॉमी) के हिसाब से सूर्य तारा और चन्द्रमा उपग्रह है, लेकिन भारतीय ज्योतिष में इन्हें ग्रहों में शामिल किया गया है। राहु और केतु गणितीय बिन्दु मात्र हैं और इन्हें भी भारतीय ज्योतिष में ग्रह का दर्जा हासिल है।भारतीय ज्योतिष पृथ्वी को केन्द्र में मानकर चलती है। राशिचक्र वह वृत्त है जिसपर नौ ग्रह घूमते हुए मालूम होतेहैं। इस राशिचक्र को अगर बारह भागों में बांटा जाये, तो हर एक भाग को एक राशि कहते हैं। इन बारह राशियों के नाम हैं-
मेष,
वृषभ,
मिथुन,
कर्क,
सिंह,
कन्या,
तुला,
वृश्चिक,
धनु,
मकर,
कुंभ
मीन।
इसी तरह जब राशिचक्र को सत्ताईस भागों में बांटा जाता है, तब हर एक भाग को नक्षत्र कहते हैं। हम नक्षत्रों की चर्चा आने वाले समय में करेंगे।एक वृत्त को गणित में 360 कलाओं (डिग्री) में बाँटा जाता है। इसलिए एक राशि, जो राशिचक्र का बारहवाँ भाग है, 30 कलाओं की हुई। फ़िलहाल ज़्यादा गणित में जाने की बजाय बस इतना जानना काफी होगा कि हर राशि 30 कलाओं की होती है।हर राशि का मालिक एक ग्रह होता है जो इस प्रकार हैं -राशि अंग्रेजी नाम मालिक ग्रह
मेष    एरीज़    मंगल
वृषभ     टॉरस    शुक्र
मिथुन   जैमिनी    बुध
कर्क    कैंसर   चन्द्र
सिंह   लियो     सूर्य
कन्या     वरगो    बुध
तुला     लिबरा    शुक्र
वृश्चिक    स्कॉर्पियो    मंगल
धनु     सैजीटेरियस    गुरू
मकर   कैप्रीकॉर्न   शनि
कुम्भ     एक्वेरियस    शनि
मीन    पाइसेज़    गुरू
आज का लेख बस यहीं तक। लेख के अगले क्रम में जानेंगे कि राशि व ग्रहों के क्या स्वाभाव हैं और उन्हें भविष्यकथन के लिए कैसे उपयोग किया जा सकता है। (पुनीत पांडे )

कामाख्या शक्तिपीठ पूजन परिक्रमा और इतिहास

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